गुरुवार, 28 जून 2007

एक गुमशुदा कवि के लिए भाई का विज्ञापन

प्रिय भैया कवि,
तुम जहाँ कहीं भी हो
वहीं रहना
जो भी कष्ट पडे अकेले सहना

तुम्हारे जाने का किसी को दुःख होगा
यह सिर्फ मन की भ्रान्ति है
जब से तुम गये हो
घर में पूर्ण शान्ति है

तुम्हारी बीमार माता अब सुखी जीवन जी रही है
पत्नी दोनों वक्त 'बौर्नविटा' पी रही है
तुम्हारे तीनों साले घर पर ही डंड पेल रहे हैं
चारों बच्चे गली में गिल्ली-डंडा खेल रहे हैं

उधार वाले दुकानदार जरूर घबडा गये हैं
कई बार घर के चक्कर भी लगा गये हैं
इसलिए प्रिय भैया कवि!
तुम जहाँ कहीं भी हो वहीं रहना
जो भी कष्ट पडे अकेले सहना

तुम्हारे जाने से फालतू कविता-प्रेमी
अवश्य दुःखी हो गए हैं
पर मुहल्ले के तो सभी लोग सुखी हो गए हैं

नोट-
जो कोई भी इस गुमशुदा का पता हमें देगा
हमारे साथ दुश्मनी करेगा
जो इसे मनाकर
घर ले आएगा
वो पुरस्कार नहीं दंड पाएगा | 
-सुरेन्द्रमोहन मिश्र

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