मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

यादें

उनकी यादों के झरोखों में
मैं ही मैं था
जाने क्या बात हुई
आज
उन झरोखों में
किसी और का वजूद था...

क्या ख़ता हुई मुझसे
यह तो मालूम नहीं
लेकिन रुसवाई उनकी
दिल को चूर कर गयी.

जब मैंने देखा था उनको पहली बार
और हम दोनों की नजरें हुई थीं चार
तब मैंने पाया था उनमें
अपने लिए असीमित प्यार
फिर क्योंकर बदल गयीं वह नजरें?

मुझे याद आ रही है वो शाम
जब हम दोनों थे अपनी दुनिया में खोये हुए
वो लेटी थी
मेरी गोद में
अचानक
मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर उसने पूछा-
’मुझे भूल तो नहीं जाओगे मेरे प्रियतम !’

मैंने हँसकर कहा-
यह तो समय बतायेगा कौन किसे भूलता है?
हां यह सच है, बिल्कुल सच है
समय ने बता दिया, अपना पैगाम दे दिया
मुझसे सवाल करने वाली उसकी वह नजरें बदल गयीं
आज
उन आँखों में अजीब अनजानापन है

खैर,
कोई बात नहीं
लोग आते हैं, जाते हैं
लेकिन शहर नहीं बदलता
हाँ, यह जरुर है कि-
करनी होगी फिर से एक शुरुआत
फिर वही मौजूँ होगा, वही किनारा होगा
वही आसमान होगा, वही सितारा होगा....

(15 फरवरी 2004 वाले दैनन्दिनी के पन्ने से...)