गुरुवार, 19 जुलाई 2007

आजकल मनमोहन जी दुःखी हैं......

विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि भारतीय गणराज्य के प्रधानमंत्री को आजकल नींद नहीं आ रही है । कारण तो कुछ ज्यादा स्पष्ट नहीं हुआ है लेकिन 'बेनकाब टी.वी.' के अनुसार हनीफ की माँ का रोना ही मनमोहन जी के नींद नहीं आने का सर्वप्रमुख कारण है । आखिर मनमोहन जी करें भी तो क्या करें? देश के संसाधनों पर सर्वप्रथम हक वाला , आस्ट्रेलियाई सरकार के द्वारा तंग किया जा रहा है ! अब ये अमेरिका के राष्ट्रपति तो हैं नहीं कि आस्ट्रेलिया को डाँट दें ! तो इन्होने अपनी नींद ना आने की चिन्ता से उबरने हेतु आस्ट्रेलियाई दूत को बुलाकर कह दिया कि भाई आप उसे सारी सुविधाएँ दो। हमारे प्रधानमंत्री जी बहुत व्यथित हो जाते हैं जब भी "संसाधनों पर पहले हक वालों" को उनके जिहाद कार्य से रोक दिया जाता है । हाँ, इनकी व्यथा तब कुछ हद तक दूर हो जाती है जब ये "हक वाले" कश्मीर में कुछ "बेहक वालों" को मार देते हैं । बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिए प. बंगाल के 24 परगना जिले में एक 14 वर्षीय हिन्दू बालक को, उस क्षेत्र में अल्पसंख्यक होने के कारण जला देते हैं, इस घटना से उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगती लेकिन सुदूर कहीं कुछ हो जाए तो बस पूछिए मत कि कैसी हो जाती है उनकी हालत ? हनीफ के अलावा एक और "हक वाला" इनका प्रिय है, जिसके बचाव में इनके अपने कश्मीरी मुख्यमंत्री आजाद साहब खुल कर बयान दे हीं चुके हैं । जी हाँ, आप सही समझे ! अफ़जल की ही बात कर रहा हूँ । इसके लिए भी मनमोहन जी बहुत परेशान रहते हैं । ये करें तो क्या करें ? अभी वर्तमान, किन्तु अगले कुछ दिनों मे भूतपूर्व होने वाले माननीय राष्ट्रपति डॉ. कलाम से इनके और इनकी सुप्रीमो के रिश्ते कुछ खास अच्छे हैं नहीं, इस कारण अफ़जल की माफ़ी की बात चला नहीं पा रहे हैं | इसलिए सोचा कि उस कुर्सी पर किसी खास सिपाहसलार को बैठा दिया जाए, जिससे कि आगामी समय में माफ़ी का रास्ता खुल जाए । जल्दी हीं उनका यह दुःख भी दूर होने वाला है ।

मंगलवार, 17 जुलाई 2007

महात्मनाम् स्वभावः

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा 
सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः ।
यशसि चाऽभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ 
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥
भर्तृहरिणा, नीतिशतकात्

सरलार्थः - महानुभावानां स्वाभाविकोऽयं गुणः यत्ते आपत्काले व्याकुला न भवन्ति, संपदि च सर्वं सहन्ते, विद्वत्सभायां सरसवचनेन सर्वानावर्जयन्ति, रणरङ्गे लम्पटा भूत्वा न पलायन्ते, यशोभिवृद्धये निरन्तरं प्रयतन्ते, वेदशास्त्राभ्यसने सततं प्रवृत्तास्तिष्ठन्ति ।

हिन्द्याम् - विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में सहिष्णुता, सभा में वाक् चातुरी, युद्ध में वीरता, यश में उत्कण्ठा, वेद-शास्त्रों विषयक अनुराग, ये गुण महानुभावों के स्वभाव में ही पाये जाते हैं ।

शनिवार, 14 जुलाई 2007

पुरुषविवेचनम्

एके सत्पुरुषाः परार्थघटकाः स्वार्थं परित्यज्य ये, 
सामान्यास्तु परार्थमुद्यमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये ।
तेऽमी मानुषराक्षषाः परहितं स्वार्थाय निघ्नन्ति ये,
ये निघ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे ॥
-भर्तृहरिणा, नीतिशतकात्.

सरलसंस्कृतार्थ :- ये तु स्वार्थं त्यक्त्वा परार्थं साधयन्ति ते सज्जनाः, ये स्वार्थ अविरोधेन परार्थं कुर्वन्ति ते साधारणाः, ये च केवलं स्वार्थपराः सन्तः परार्थं विध्वंसयन्ति ते राक्षसप्रकृतयोऽधम-कोटिभाजो उच्यन्ते । किन्तु ये निरर्थकं परहिते बाधका भवन्ति ते कथंभूता इति न वयं जानीमः ।

हिन्दी - इस संसार में कुछ ऐसे विरले सज्जन व्यक्ति होते हैं जो अपने स्वार्थ का त्याग करके भी परोपकार करते हैं । ऐसे व्यक्ति के लिए अपना-पराया जैसा भेद नहीं रहता । वह प्रत्येक मनुष्य में उसी सच्चिदानन्द का दर्शन करता है, जो उसके स्वयं के अन्तस् में विद्यमान हैं । अतः किसी का भी दुःख उसका अपना हो जाता है और उस दुःख के निवारणार्थ निज को कष्ट पहुँचाने में भी हिचक नहीं होती । दूसरी कोटि होती है- साधारण प्रकार के व्यक्तियों की, जो अपने स्वार्थ को सिद्ध करते हुए दूसरों के अभीष्ट की भी सिद्धि करते हैं । तृतीय कोटि वाले व्यक्ति नराधम होते हैं जो अपने स्वार्थ की सिद्धि हेतु दूसरों के हित का नाश कर देते हैं । किन्तु ऐसे भी हैं जो परहित का निष्कारण ही हनन करते हैं, उनकी कौन सी कोटि है, यह बताना हमारे वश की बात नहीं ।

कर्ममाहात्म्यम्

ब्रह्मा येन कुलालवन्नियमितो ब्रह्माण्डभाण्डोदरे, 
विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तो महासङ्कटे । 
रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः, 
सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने, तस्मै नमः कर्मणे ॥ 
-भर्तृहरिणा, नीतिशतकात्

सरलसंस्कृतार्थ :- कर्मवशादेव ब्रह्मा कुम्भकारवत् सृष्टिकार्यं निरमपयति, विष्णुश्च दशसु अवतारेषु कष्टं सहते । शिवश्च कपालजटितेन पाणिना हस्तेन वा भिक्षार्थं पर्यटति । दिवाकरोऽपि गगने सततं भ्रमति । येन कर्मणा एतेऽपि नियोजिताः तं कर्मम् अवश्यं नमस्करणीयम् ।

हिन्दीसरलार्थ :- जिस कर्म ने विधाता को ब्रह्माण्डरूपी पात्र के अन्दर कुम्हार की तरह सृष्टि कार्य हेतु नियोजित किया, विष्णु को दशावतार रूपी कष्टतम कार्य में नियुक्त किया, शंकर को हाथ में खप्पर लेकर भिक्षाटन कराया और सूर्य को आकाश में निरन्तर भ्रमण कराता है, उस कर्म को नमस्कार है ।