शुक्रवार, 29 जून 2007

एक गुमशुदा कवि के नाम पत्नी का विज्ञापन

हे मेरे बारह बच्चों के बाप,
तुम्हें लग जाए शीतला मइया का शाप
पता नहीं आदमी हो या कसाई
तुम्हें इस तरह जाते शर्म नहीं आई !!

जाना ही था तो आधे बच्चे अपने साथ ले जाते
आधे दर्जन मुझे दे जाते
पूरी प्लाटून मेरे लिए ही छोड गए हो
एक इंजन से बारह डिब्बे जोड गए हो !!

जब इनसे बहुत तंग हो जाती हूँ
एक ही बात कहके डराती हूँ
"नहीं मानोगे तो
तुम्हारे बाप को वापिस बुलवा दूँगी"
उनकी ढेर सारी कविताएँ सुनवा दूंगी"
बच्चे सहमकर चुप होने लगते हैं
कुछ तो डरकर रोने लगते हैं :(

इसलिए-
अगर तुम्हारी आँखों की
पूरी शर्म न बह गयी हो
थोडी-सी भी बाकी रह गयी हो
तो कभी घर लौट कर मत आना

ज्यादा तुम्हें क्या समझाना
चाहे जहाँ नाचो
चाहे जहाँ गाते रहना
मनीआर्डर हर महीने
घर पर भिजवाते रहना
तुम्हारे प्राणों की प्यासी-
श्रीमती सत्यानाशी |
 -सुरेन्द्रमोहन मिश्र

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