गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मणिना दिवाकराय नमः


प्रातः की इस वेला में

प्राची में आ रहे भाष्कर से

केवल यही है विनती

कि मेरे सहचरों को रखो

हमेशा

स्वस्थ एवं सानन्द.

करते रहें अनथक वे कार्य

जब तक कि उनमें है दृढ़

विश्वास.

[इन पंक्तियों को मैंने करीब तीन साल पहले लिखा था और गूगल-ग्रुप "हिन्दी-कविता" में इसे 29-अक्टूबर-2006 को पोस्ट किया था. इसे आप वहां भी देख सकते हैं. चित्र को अभी-अभी बनाया है....]

बुधवार, 2 सितंबर 2009

ईश्वर के नाम एक शिशु का पत्र....


क बच्चे को किसी कार्यवश पचास रुपए की जरुरत थी. यह राशि उसने अपने माता-पिता से लेकर बड़े भाई-बहनों से भी माँगी किंतु सबने उसे कोई ना कोई बहाना बनाकर देने से मना कर दिया. इस तरह जब काफी दिन बीत गए तब उसने सोचा कि क्यों ना सीधे भगवान्‌ से ही रुपयों के लिए प्रार्थना की जाए. ऐसा निर्णय कर उसने भगवान्‌ के नाम एक पत्र लिखा और उसे पोस्टबॉक्स में डाल दिया. जब "सेवा में, भगवान् जी‌, भारत" नामक पता लिखा हुआ वह पत्र डाकविभाग के कर्मचारियों को मिला, तो उन्होंने यह सोचा कि क्यों ना यह पत्र "भारत के राष्ट्रपति" को मजाक के रूप में अग्रेषित (फॉरवार्ड) कर दिया जाए. जब यह पत्र राष्ट्रपति जी को मिला तो पहले तो खूब हँसी, फिर उन्होने अपने सचिव को आदेश दिया कि पत्र लिखने वाले उस बालक को बीस रुपए भेज दिया जाए. पचास की जगह बीस रुपए भेजने के पीछे उनका उद्देश्य यह था कि वह बच्चा बहुत छोटा है, और इतने ज्यादा पैसे भेजने से लड़के की आदतें खराब हो सकती हैं. खैर, जब बालक को बीस रुपए मिले तो वह काफी खुश हुआ, और उसने निर्णय किया कि भगवान्‌ जी के द्वारा पैसे दिए जाने के कारण एक धन्यवादात्मक पत्र भेज देना चाहिए. उस बालक ने जो पत्र भगवान्‌ जी को भेजा, उसे ज्यों का त्यों आप खुद ही पढ़ लें-

"प्रिय भगवान्‌ जी,
पैसा भेजने हेतु आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. हालांकि, ध्यातव्य है कि आपने यह पैसा राष्ट्रपति भवन के माध्यम से भेजा है, किंतु उन बेवकूफों ने आपके भेजे गए पैसे में से तीस रुपए टैक्स के रूप में काट लिया है. खैर.....
आपका हीं..."

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[एक मित्र द्वारा प्रेषित मेल का हिंदी भावानुवाद..चित्र स्वनिर्मित है...]

सोमवार, 24 अगस्त 2009

अनुभवजन्य उक्तियाँ

मेरे एक मित्र USB ने एक मेल भेजा, जिसमें महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के द्वारा कही गयी बातों का जिक्र है. चूंकि, मुझे वह काफी प्रभावकारी लगी तो सोचा कि आंग्लमाध्यम में कही गई उस छवियुक्त फाइल को हिंदी भाषा में भी उपस्थित किया जाये, ताकि उन बातों का क्षेत्र और व्यापक हो. अस्तु, "थोड़ा लिखना/कहना और बहुत समझना" को चरितार्थ करते हुए सीधे पढ़ते है, मान्यवरों द्वारा उच्चरित छोटी, सारगर्भित महत्त्वपूर्ण बातें....

** यदि पूरे दिन में आपका प्रत्यक्षीकरण किसी समस्या से नहीं हुआ तो यह जानिए कि आप गलत रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं। --> स्वामी विवेकानंद.

** यदि आपने लोगों को समझने में ही वक्त जाया कर दिया, तो फिर आपके पास इतना समय नहीं बचेगा कि आप उनसे प्रेम कर सकें। --> टेरेसा.

** यदि आप यह महसूस करते हैं कि आपने जीवन में कभी कोई गलती नहीं की है, तो इसका मतलब यह है कि आपने अपनी जिन्दगी में कभी भी किसी नई चीज हेतु प्रयत्न नहीं किया है। --> अल्बर्ट आइंस्टीन.

** जीवन में कभी भी चार चीजें मत तोड़ो- (किसी का) विश्वास, संबंध, वचन या प्रतिज्ञा और दिल। क्योंकि जब ये टूटते हैं तो आवाज तो नहीं होती किन्तु दर्द बहुत ज्यादा होता है। --> चार्ल्स डिकेन्स.

** सफलता के तीन सूत्र :- दूसरों की तुलना में अधिक जानो, दूसरों की तुलना में अधिक श्रम/कार्य करो, और दूसरों की तुलना में कम की आशा रखो। --> विलियम शेक्सपीयर.

** यदि आप जीतते हो तो उसे दूसरों के सामने व्याख्यायित करने की आवश्यकता नहीं .... और यदि हारते हो, तो उसे बताने के लिए आप नहीं रहोगे। --> एडोल्फ हिटलर.

** यदि हम उन लोगों को प्यार नहीं कर पाते, जिन्हें हम देख रहे हैं, तो हम उस ईश्वर से कैसे प्यार कर सकते हैं, जिसे हमने देखा ही नहीं....। --> टेरेसा.

** हजार बार असफल हुआ हूं, ऐसा कहने की जगह यह कहना श्रेयस्कर है कि मैंने उन हजार रास्तों को खोजा, जो असफलता की ओर ले जाते हैं। --> थॉमस अल्वा एडीसन.

** सभी दुनिया को बदलने के बारे में सोचते हैं, किंतु कोई अपने आप को बदलने के बारे में नहीं सोचता। --> लियो टॉलस्टॉय.

** प्रत्येक व्यक्ति पर विश्वास करना खतरनाक है, किंतु किसी पर भी विश्वास न करना, उससे भी ज्यादा खतरनाक है। --> अब्राहम लिंकन.

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

बात में दम है भाया !!

** नहीं पढूंगा(गी)-नहीं पढूंगा(गी), ला दो चाहे ढेर मिठाई । पहले मुझे बता दो पापा, किसने की थी शुरु पढ़ाई ! x-(

** मैं जन्मना बुद्धिमान था लेकिन इस "पढ़ाई-लिखाई" के चक्‍कर ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा

** अभ्यास से व्यक्ति पूर्ण बनता है.... यह भी उतना ही सच है कि कोई व्यक्ति कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता.... तो अभ्यास की आवश्यकता क्या है !!

** यह सत्य है कि हमें सदा दूसरों की सहायता करनी चाहिए .........तो फिर दूसरे क्या करेंगे, भाई J

** प्रकाश की गति ध्वनि की तुलना में तीव्रतर होती है.........ऐसा हमने भौतिकीशास्त्र में पढ़ा है........... तो फिर धर्मेन्द्र भैया के दिखाई देने से पहले उनकी आवाज कि कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा पहले सुनाई क्यूं देती है, बताइए??

** पैसा ही सबकुछ नहीं हैं.... भई, मास्टरकार्ड और वीजाकार्ड भी तो कोई चीज है !!

** व्यक्ति को जानवरों से प्यार करना चाहिए..... वे बहुत स्वादिष्ट होते हैं (यम्म्म्म्म्म्म) !!

** सफल व्यक्ति के पीछे एक महिला का हाथ होता है…... और एक असफल व्यक्ति के पीछे, दो महिलाओं का । J

** एक Wise (बुद्धिमान) व्यक्ति कभी शादी के पचड़े में नहीं पड़ता है, और जब वह शादी कर लेता है तोOtherwise हो जाता है।

** सफलता एक संबंधी शब्द है.... यह बहुत सारे संबंधियों से मिला देता है।

** कभी भी अपना काम कल पर मत छोड़ो.... ऐसा किया तो फिर आज के लिए क्या छोड़ोगे??

** तुम्हारा भविष्य तुम्हारे सपने पर निर्भर है..... इसलिए चैन से सोकर सपने देखो J

** दिन की शुरुआत करने के लिए सवेरे-सवेरे जगने की अपेक्षा क्या कोई और बेहतर तरीका नहीं हो सकता??

** अत्यधिक परिश्रम किसी को मारता नहीं...... लेकिन रिस्क (खतरा) लेने की क्या जरुरत??

** काम मुझे मोहित कर लेता है..... मैं इसकी घंटों प्रतीक्षा कर सकता हूं।

** ईश्वर ने रिश्तेदार बनाए...... ईश्वर को धन्यवाद कि कम-से-कम हम अपना मित्र तो चुन सकते हैं।

** जितना अधिक सीखोगे, उतना अधिक जानोगे। जितना अधिक जानोगे, उतना अधिक भूलोगे। जितना अधिक भूलोगे,उतना कम जानोगे......... अतः सीखने की क्या जरुरत, भैये!!

** बस-स्टेशन वह है, जहां एक बस रुकती है। रेलवे-स्टेशन वह है, जहां ट्रेन रुकती है। जहां मैं प्रतिदिन जाता हूं, उसे "कार्य-स्टेशन" कहा जाता है........तो फिर (?).......अब, आगे और क्या कहूं !!

--अंग्रेजी में प्राप्त एक मेल का किंचित्‌ संशोधन सहित हिन्दी रूपान्तरण--

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

भारतीय नववर्ष 2066 वि.सं. हेतु हार्दिक शुभेच्छाएँ.....

जब ईसा के 57 वर्ष पूर्व महान्‌ सम्राट विक्रमादित्य ने शक आक्रमणकारी खरोश को हराकर उज्जैन में अपना राज्यारोहण प्रारंभ किया तो तत्कालीन समय में एक नये कैलेण्डर अर्थात्‌ पञ्चाङ्ग की शुरुआत की गई, जिसे हम आज विक्रम संवत्‌ के रूप में जानते हैं। इस नववर्ष का प्रथम दिन चैत्र मास के शुक्लपक्ष के प्रथम दिवस अर्थात्‌ प्रतिपदा को प्रारंभ होता है, जो इस्वी वर्ष 2009 में आज शुक्रवार, 27 मार्च को पड़ा है। अस्तु, यह नववर्ष आपके लिए, आपके परिवार के लिए, समाज के लिए, देश के लिए और संपूर्ण विश्व के लिए भय, त्रासदी, आतंकरहित हो, ऐसी अभिलाषा के साथ पुनश्च.........

शिवमय सुखमय ऋद्धि-सिद्धिमय
नित्य नवल समृद्धि-वृद्धिमय
शान्ति-शक्तिमय प्रीति-भक्तिमय
नित-नूतन उत्कर्ष आपका
मंगलमय हो नववर्ष 2066 आपका ॥

मंगलवार, 17 मार्च 2009

शासन-प्रणाली का सच

अपनी दैनिक चर्या के अनुसार पिंटू समाचार-पत्र पढ़ रहा था।
अचानक उसने अपने पिताजी से पूछा- "पिताजी ! शासन-प्रणाली से क्या तात्पर्य है?"
"ये कुछ ऐसा है......" पिताजी कुछ देर तक सोचते रहे और फिर बोले, "देखो, मैं धन कमाता हूं और उसे लेकर घर आता हूं, मतलब कि मैं मनीहोल्डर हूं। तुम्हारी मां यह निश्चित करती हैं कि कहां और कैसे उस पैसे को खर्च करना है। इसका मतलब वो सरकार है। जो नौकरानी हमारे घर के काम करती है, वह हो गई श्रमिक वर्ग की प्रतिनिधि। तुम हो गये आम आदमी। तुम्हारा छोटा भाई हो गया भविष्य या अगली पीढ़ी। आई बात समझ में?"
उस दिन पिंटू इन्ही बातों को सोचता हुआ सो गया। अचानक आधी रात में छोटे भाई के रोने-चिल्लाने से उसकी नींद खुल गयी। चूंकि उसके छोटे भाई ने बिस्तर को गीला कर दिया था, इसलिए रो रहा था। पिंटू से रहा नहीं गया तो वह अपनी मां को जगाने चला गया। किंतु मां गहरी नींद में होने के कारण उठी नहीं तब पिंटू नौकरानी को जगाने के लिए उसके कमरे में चला गया। वहां उसने देखा कि उसके पिताजी नौकरानी के साथ सोये हुए थे। अंततोगत्वा, पिंटू अनमना होकर वापस अपने कक्ष में आ गया।
अगले दिन उसके पिताजी ने पिंटू से पूछा- "मेरे बेटे ! कल जो मैंने शासन-प्रणाली के बारे में बताया था, वो तुम समझे कि नहीं?"
पिंटू ने उत्तर दिया- "हां पिताजी, मैं पूरी तरह से समझ गया !! कि जब हमारे देश का भविष्य अपनी मूलभूत जरुरतों को पाने हेतु चिल्लाता रहता है तब मनीहोल्डर, श्रमिक वर्ग का शोषण करने में व्यस्त होता है और हमारी सरकार सोती रहती है।  इन सब चक्करों में आम आदमी घून की तरह पिस रहा है !!"

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प्राधिकारित्व के संबंध में:--> पुनश्च यहां अपेक्षित है कि यह मैं स्वीकार लूं कि उपरोक्त अनुच्छेद मेरी रचनात्मकता का प्रतिरूप नहीं है, अपितु जीमेल रूपी खाते में एक मित्रा के द्वारा प्रेषित अंग्रेजी मेल का भावानुवाद भर है। हां, किंचित स्थानों पर थोड़ी-बहुत जोड़-तोड़ अवश्य की गयी है। खैर, इससे आपको क्या !! आप तो बस पढ़िए और अच्छा लगे तो रामलुभाया की बातों को मानकर टिप्पणी रूपी पुरस्कार से प्रोत्साहित कर दीजिए। अच्छा जी, अब चलता हूं...पुनर्मिलामः
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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

वो भी क्या दिन थे !!

ये भी कितनी अजीब बात है ना !! कि एक ऐसा समय भी होता है जब हम बड़े होने की जल्दी में होते हैं, जब हम यह चाहते हैं कि अपना एक मुकाम हासिल करके चैन की बांसुरी बजाएं! कि जब हम जैसा चाहें, पलक झपकते ही प्राप्त कर लें ! जब ऐसा दिन भी हम अपनी जिन्दगी में देख लेते हैं तो भी कहीं ना कहीं हमें रिक्तता का अहसास रहता ही है, और तब हम किंचित्‌ रुक कर अपने बीते हुए पलों को याद करने लगते हैं. इसी भीतरी झंझावातों का शब्द-चित्रण नीचे किया गया है-

रात के आठ बजे हैं, 
ऑफिस से निकलने का समय है,
जीवन की परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं,

कि 
कैसे कॉलेज में पढ़ने वाला, 
रुमानी दुनिया में रहने वाला एक छोरा, 
कठिन व्यावसायिक जीवन में प्रवेश कर गया है !!

कि 
पिताजी से मिलने वाला वह थोड़ा-सा जेबखर्च 
बदल गया है भारी मासिक वेतन में!!
फिर भी क्यों दे नहीं पा रहा, 
पहले जैसी खुशियां ??

कि 
कैसे वो साधारण से पैण्ट-शर्ट, 
परिवर्तित हो गए हैं,
अलमारी में भरे हुए मेरे नए-नए ब्रांडेड कपड़ों में !!
लेकिन क्यों फिर भी ये कपड़े 
अनछुए ही रह जाते हैं?

कि कैसे समोसे का प्लेट,
परिवर्तित हो गया है पिज्जा और बर्गर में !!
लेकिन भूख है कि लगती नहीं...

ऑफिस से निकलने का समय है 
और मैं सोच रहा हूं 
जीवन में आए इस बदलाव के बारे में...

कि 
कैसे हमेशा रिजर्व मोड में रहने वाला, 
मेरा वह बाइक,
फोर्ड आइकॉन में बदल गया है !!
फिर भी घूमने वाली जगह नहीं है.

कि 
कैसे वो चाय का ठेला 
जहां मैं रोज चाय पिया करता था,
नेस्ले के आउटलेट में बदल गया है !!
फिर भी ऐसा लगता है कि 
दूकान बहुत दूर है...

कि 
कैसे वो 200 रुपए का प्री-पेड मोबाइल कार्ड,
बदल गया है 
असीमित पोस्ट-पेड पैकेज में !!
फिर भी क्यूं,
बातों की तुलना में गाहे-बगाहे मैसेज से काम चलाया जाता है ??

कार्यालय से निकलते समय 
सोच रहा हूं 
अपने जीवन में आये इस परिवर्तन के बारे में...

कि 
कैसे अनारक्षित बोगी की वह रेल यात्रा 
बदल गई है हवाई उड़ानों में !!
फिर भी छुट्टियां नहीं मिल पा रहीं 
आनंद मनाने हेतु.

कि 
कैसे मित्रों का वह छोटा-सा समूह 
परिवर्तित हो गया है 
सहकर्मियों के रूप में !!
लेकिन फिर भी क्यूं 
हमेशा अकेलापन महसूस होता है ??

ऑफिस से निकलते वक्त 
जीवन की इस परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं 
कि ऐसा कैसे हो गया?
कि ऐसा क्यूंकर बदल गया...
आखिर कैसे??

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इसमें किसी मौलिकता का समावेश नहीं है. कल मेरे एक सहकर्मी ने अंग्रेजी में एक मेल भेजा था, उसी मेल का हिंदी में भावानुवाद भर किया है. हालांकि, यह भी सही है कि इन पंक्तियों के द्वारा स्वयं की भी अभिव्यक्ति हो गई है. खैर, इससे आपको क्या !! आप तो बस इसे यूं ही पढ़िए, और लगे कि कुछ अपने राम को भी कहना चाहिए तो बिंदास कहिए....हे हे हे
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सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

वयं भारतीयाः : हम कौन थे और क्या हो गए !!

सर्वेभ्यो नमः....सभी को नमस्कार....

विगत वर्ष के अंतिम दिवस को यहां मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, उसके बाद पाणिनि बाबा के "अदर्शनं लोपः" सूत्र का प्रभाव हो गया था.  आज सुबह कार्यालय आने के बाद हर दिन की तरह सबसे पहला काम "जीमेल को खोलना" किया तो लगभग तेरह के करीब अपठित मेल दिखे, जिसमें  तीसरा मेल किसी राहुल जी  का था, जिन्होंने यह मेल "आर्य युवक समूह" को भेजा था, जिसका मैं भी (चाहे/अनचाहे- इस शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूं कि शुरु में जब इस ग्रुप से मेल आने शुरु हुए तो वो मेरी मर्जी के बिना ही आते थे अर्थात्‌ मैं कभी भी इनका मेंबर नहीं बना था, लेकिन शनैः-शनैः इनके इ-संदेशों में रुचि जागृत होने लगी) एक सदस्य हूं. अस्तु, इस इ-मेल की सामग्री मुझे रोचक लगी तो सोचा कि इसका हिंदी अनुवाद करके अपने ब्लॉग को भी थोड़ा अद्यतन कर दिया जाये. नीचे प्रस्तुत है उसी इ-मेल का अनुवाद.....

एक अमेरिकी भारत-भ्रमण करने के बाद जब वापस अमेरिका पहुंचा तो वहां पर उसके भारतीय मूल के मित्र ने उससे पूछा- "मेरा देश तुम्हे कैसा लगा?"

अमेरिकी ने कहा- "वाकई एक अद्भुत और महान देश!! जिसका अपना एक ठोस इतिहास व गौरवशाली परंपरा है, साथ ही जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है."   

तब भारतीय मित्र ने पूछा- "तुम्हे भारतीय कैसे लगे??"

भारतीय??
कौन है भारतीय???
मैंने पूरे भारतवर्ष में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं पाया जो भारतीय हो.....

क्या बक रहे हो !!
तब भारत में जिन लोगों को तुमने देखा, वो कौन थे??

अमेरिकी ने कहा-
कश्मीर में मिला एक कश्मीरी से.
पंजाबी मिले मुझे पंजाब में.
आमची महाराष्ट्र बोल रहे थे मराठी मानुस.
बिहार, बंगाल, कर्नाटक में मिला मैं, बिहारी, बंगाली और कन्नडिगा से....

थोड़ा और पूछने पर, 
पाया मैंने,
एक मुसलमान,
एक ईसाई,
एक जैन,
एक बौद्ध,
इसके अलावे और भी ना जाने कितने....

लेकिन नहीं मिला तो सिर्फ एक भारतीय से  :(

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हो सकता है सम्प्रति आप इसे "JOKE" की श्रेणी में रखें, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब आप और हम अपने राजनीतिज्ञों की कृपा से ऐसे दृश्यों के अभ्यस्त हो जाएं... 
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वन्दे मातरम्‌ !!!