प्रातः की इस वेला में
प्राची में आ रहे भाष्कर से
केवल यही है विनती
कि मेरे सहचरों को रखो
हमेशा
स्वस्थ एवं सानन्द.
करते रहें अनथक वे कार्य
जब तक कि उनमें है दृढ़
विश्वास.
[इन पंक्तियों को मैंने करीब तीन साल पहले लिखा था और गूगल-ग्रुप "हिन्दी-कविता" में इसे 29-अक्टूबर-2006 को पोस्ट किया था. इसे आप वहां भी देख सकते हैं. चित्र को अभी-अभी बनाया है....]
मित्र जब आप यह चित्र बना रहे थे तो मैनें भी देखा था...! खैर आपका विचार और कविता दोनों ही सराहनीय हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंइस के लिये ओर सुरेश जी के ब्लॉग पर टिपण्णी मे लिखे शब्दों के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंमैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
जवाब देंहटाएंवाह ! आपका जेएनयु पर महाभारत वाला पेज देखा. कहीं अर्थ सहित ऑनलाइन मिलेगा क्या? संस्कृत इतनी नहीं आती कि महाभारत समझ ले :) वैसे आप पुणे में हैं तो कभी मिलते हैं. अभी पुणे में हैं या दिल्ली में? पुणे में तो कहाँ? abhishek.ojha[AT]gmail.com
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
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