मंगलवार, 17 मार्च 2009

शासन-प्रणाली का सच

अपनी दैनिक चर्या के अनुसार पिंटू समाचार-पत्र पढ़ रहा था।
अचानक उसने अपने पिताजी से पूछा- "पिताजी ! शासन-प्रणाली से क्या तात्पर्य है?"
"ये कुछ ऐसा है......" पिताजी कुछ देर तक सोचते रहे और फिर बोले, "देखो, मैं धन कमाता हूं और उसे लेकर घर आता हूं, मतलब कि मैं मनीहोल्डर हूं। तुम्हारी मां यह निश्चित करती हैं कि कहां और कैसे उस पैसे को खर्च करना है। इसका मतलब वो सरकार है। जो नौकरानी हमारे घर के काम करती है, वह हो गई श्रमिक वर्ग की प्रतिनिधि। तुम हो गये आम आदमी। तुम्हारा छोटा भाई हो गया भविष्य या अगली पीढ़ी। आई बात समझ में?"
उस दिन पिंटू इन्ही बातों को सोचता हुआ सो गया। अचानक आधी रात में छोटे भाई के रोने-चिल्लाने से उसकी नींद खुल गयी। चूंकि उसके छोटे भाई ने बिस्तर को गीला कर दिया था, इसलिए रो रहा था। पिंटू से रहा नहीं गया तो वह अपनी मां को जगाने चला गया। किंतु मां गहरी नींद में होने के कारण उठी नहीं तब पिंटू नौकरानी को जगाने के लिए उसके कमरे में चला गया। वहां उसने देखा कि उसके पिताजी नौकरानी के साथ सोये हुए थे। अंततोगत्वा, पिंटू अनमना होकर वापस अपने कक्ष में आ गया।
अगले दिन उसके पिताजी ने पिंटू से पूछा- "मेरे बेटे ! कल जो मैंने शासन-प्रणाली के बारे में बताया था, वो तुम समझे कि नहीं?"
पिंटू ने उत्तर दिया- "हां पिताजी, मैं पूरी तरह से समझ गया !! कि जब हमारे देश का भविष्य अपनी मूलभूत जरुरतों को पाने हेतु चिल्लाता रहता है तब मनीहोल्डर, श्रमिक वर्ग का शोषण करने में व्यस्त होता है और हमारी सरकार सोती रहती है।  इन सब चक्करों में आम आदमी घून की तरह पिस रहा है !!"

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प्राधिकारित्व के संबंध में:--> पुनश्च यहां अपेक्षित है कि यह मैं स्वीकार लूं कि उपरोक्त अनुच्छेद मेरी रचनात्मकता का प्रतिरूप नहीं है, अपितु जीमेल रूपी खाते में एक मित्रा के द्वारा प्रेषित अंग्रेजी मेल का भावानुवाद भर है। हां, किंचित स्थानों पर थोड़ी-बहुत जोड़-तोड़ अवश्य की गयी है। खैर, इससे आपको क्या !! आप तो बस पढ़िए और अच्छा लगे तो रामलुभाया की बातों को मानकर टिप्पणी रूपी पुरस्कार से प्रोत्साहित कर दीजिए। अच्छा जी, अब चलता हूं...पुनर्मिलामः
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4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या खूब !!
    मनोरंजन का मनोरंजन भी. और धनकुबेरों और (कु)शासन पर करारा व्यंग्य भी.
    लाजवाब!! रोचक उद्धरण के माध्यम से परिस्थितियों का सही चित्रण किया आपने
    .

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  2. यहाँ एक और बात भी छिपी हुई है जिसे जानना भी अनिवार्य है । "आम आदमी" के सामने सब कुछ होते हुए भी वो कितना अंधा है । वह श्लोक याद है - लोचनाभ्याम् विहीनस्य दर्पणम् ...?

    ऐसे अंधे वर्ग के भाग्य में दुर्भोग नहीं होगा तो क्या होगा ?

    सबको सब कुछ पता है तब भी सब चुप हैं , शांत हैं, संतुष्ट हैं । अगर विरोध नहीं होगा तो अधर्मी क्या कभी स्वयं चले जाऐंगे ?

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  3. Nice interpetation ..........of nowadays government and its divison of work.

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  4. हा हा हा

    मजेदार है भाई, और सच भी

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