ओ रामलुभाया,
बोलो भाया
ये इंडिया है,
जानता हूं.
क्या जानते हो?
यही कि ये इंडिया है.
चुप्प बुड़बक!!
ये जानते हो...
क्या?
कि..
हां, बोलो-बोलो, क्या?
कि, इहां एम्बुलेंस और पुलिस की पहुंच से जल्दी पिज्जा की होम-डिलीवरी होती है.
अच्छा, ऐसा!!
हां, यहां वाहन-ऋण 5% की दर से मिल जाएगा, किंतु शिक्षा-ऋण 12% से कम नहीं.
वाह-वाह क्या बात कही भाया,
अरे बात-वात कुछ नहीं.
जानते हो?
आप ही बता दो.
यहां चावल 40 रुपए किलो लेकिन सिमकार्ड फ्री मिल जाएगा “दुनिया को मुट्ठी में करने खातिर”.
जे बात.....!!
इहां का करोड़पति के पास किरकिट टीम खरीदन वास्ते पैसा बहुते है, लेकिन किसी अच्छे काम में देने के लिए नहीं.
पैरन में पहिने जाने वाले जूते-चप्पल भी ए.सी. की हवा खाते हैं, लेकिन मुंह में डाली जाने वाली सब्जिया फूटपाथ पर बिकती है.
बहुत सही.
ऐ सही-वही का कउनो बात नहीं है इसमें.
जो दिखा, वो बोला.
और...........
कृत्रिम स्वाद में नींबू के जूस का मजा, और वास्तविक नींबू वाला लिक्विड बर्तन धोने के लिए मिलता है.
सौ बातन की एक बात...
क्या?
बाल-मजदूरी पर समाचारपत्र में प्रकाशित आलेख को पढ़ते हुए लोग चाय की दुकान पर चाय की चुस्की के साथ बकैती करते हैं कि "बच्चों से काम करवाने वाले को तो फाँसी पर चढ़ा देना चाहिए" और थोड़ी देर में वहां एक मित्र के आ जाने पर चिल्लाते हैं- "ओ छोटुआ, दो चाय ले के आ फटा-फट".
तो भाया ई है हमर इंडिया....
[[डिस्क्लेमर: भाईयों, लापतागंज के बिजी पांडे की तरह हमहु बड़े बिजी रहते हैं, इसी कारण ब्लॉगवा पर कुछु चेप नहीं पाते हैं। चेपना इसलिए कह रहे हैं कि लिखना आता नहीं। ब्लॉग-जगत् पर अपनी जो थोड़ी बहुत सक्रियता है, वो टिप्पणीकार के रूप में ही है। अब आज जो ये परम-पावन "चेपन-कार्य" कर रहा हूं, उसका कारण हमरे एक परिचित के द्वारा फारवार्डेड ई अंग्रेजिया मेल है। हमने सोचा कि थोड़ा बहुत इधर-उधर औरी संशोधन करिके इसे हिंदी में अंतरित करके अपने ब्लॉगवा पर लगा दिया जाए जिससे हमर ई ब्लॉगवा थोड़ा और धनी हो जाए। कवनो गलती त नाहीं ना किया भाईजी लोगों!! माफ कीजिएगा बहिनजी लोगन के संबोधित करना त भूलिए गया। त का कहते हैं, कुछ टिपियाने का इरादा है कि नहीं? कि खालिए-खालिए चले जाने का इरादा है?? मूल चित्र यहां है।]]
काहे खाली जाएंगे भाई।
जवाब देंहटाएंपढ़े हैं तो चुकता तो करना पड़ेगा।
लो भई कर दिया।
मजेदार प्रस्तुति।
इरादों की चमक है,
जवाब देंहटाएंतो रोशनी तो होनी ही थी.
लेख का पस्तुतीकरण लुभावना तथा प्रेरणादायक लगा..
sara chittha khol diya...halaat bad se badtar ho gaye hain...sabhi se nivedan hain ki avashya kuch na kuch prayas karein....india ko wapas bharat bana de...
जवाब देंहटाएंकमाल का भाई....एकदम धाँसू....यथार्थ चिंतन.........
जवाब देंहटाएंआपका सन्देश हम तक पहुँच गया ....सब कुछ हालात बतला दिए ......एक अच्छी मुहीम
जवाब देंहटाएंBahut badhiya chitran kiye hai wastavikta ke sath
जवाब देंहटाएंdhanyavad
Ajit Tiwari
परम सत्य
जवाब देंहटाएंwahh!!!!
जवाब देंहटाएंkya likha hai...
apka to jawab nahi...
Waah Bhai Kya kahne... Lekin aap bhi naa piche pade rahte hain.. Just Chilll Yaarrrrr
जवाब देंहटाएंbahut bariya bhaya
जवाब देंहटाएंअहा!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दिवाकरजी!
दिल खुश हो गया!
हहा!!!
जवाब देंहटाएंमजा आ गया!
प्रथम बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ, अब सोचता हूँ कि पहले क्यों न आया.
जवाब देंहटाएंमजेदार काम किया है आपने. एक छोटे से बज़ का आलेख बना डाला.
@ राजीव जी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आपका धन्यवाद, जो हमारे ब्लॉग पर पधारे । आशा है, यदा-कदा आते रहेंगे....
अस्तु, "भाया, ये इंडिया है!!" नामक पोस्ट के सबसे अंतिम अनुच्छेद अर्थात् डिस्क्लेमर को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि मेरे द्वारा प्रकाशित यह आलेख बज्ज का अनुगामी नहीं अपितु पुरोगामी है ।