वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
[[जिस प्रकार एक मनुष्य पुराने व फटे वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नये शरीर को प्राप्त होता है।]]
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।
[[यह आत्मा किसी भी काल में न तो जन्मता है और न मरता ही है; यह अजन्मा, नित्य,सनातन और पुरातन है; शरीर के मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता।]]
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।
[[इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकता।]]
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।।
[[इस आत्मा को काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, गलाया नहीं जा सकता, और ना हीं सुखाया जा सकता है; यह नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहनेवाला और सनातन है।]]
~~~~~~~~~~~
दिनांक: 18 मई 2010, समय: 04:37 अपराह्न
~~~~~~~~~~~
बंधुओं, बहुत ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि श्री राघवेन्द्र गुप्ता जी का कुछ समय पूर्व पुणे के रत्ना स्मृति चिकित्सालय में देहावसान हो गया। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे एवं उनके परिवार वालों को इस अपूरणीय क्षति को सहने की शक्ति प्रदान करे।
साथ-साथ काम करते-करते
परिचय का एक खाका तैयार हुआ
जो लंच और चाय के वक्त में
होने वाली बात-चीत के साथ
कब प्रगाढ़ आत्मिक संबंध में बदल गया
पता हीं नहीं चला
यूं धीरे-धीरे आकर
हमारी दुनिया में दाखिल हो जाना
तब पता चला
जब आप हमारी दुनिया से बहुत दूर चले गए
राघवेन्द्र, आप बहुत याद आओगे....
बहुत ही याद आओगे....