गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

वो भी क्या दिन थे !!

ये भी कितनी अजीब बात है ना !! कि एक ऐसा समय भी होता है जब हम बड़े होने की जल्दी में होते हैं, जब हम यह चाहते हैं कि अपना एक मुकाम हासिल करके चैन की बांसुरी बजाएं! कि जब हम जैसा चाहें, पलक झपकते ही प्राप्त कर लें ! जब ऐसा दिन भी हम अपनी जिन्दगी में देख लेते हैं तो भी कहीं ना कहीं हमें रिक्तता का अहसास रहता ही है, और तब हम किंचित्‌ रुक कर अपने बीते हुए पलों को याद करने लगते हैं. इसी भीतरी झंझावातों का शब्द-चित्रण नीचे किया गया है-

रात के आठ बजे हैं, 
ऑफिस से निकलने का समय है,
जीवन की परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं,

कि 
कैसे कॉलेज में पढ़ने वाला, 
रुमानी दुनिया में रहने वाला एक छोरा, 
कठिन व्यावसायिक जीवन में प्रवेश कर गया है !!

कि 
पिताजी से मिलने वाला वह थोड़ा-सा जेबखर्च 
बदल गया है भारी मासिक वेतन में!!
फिर भी क्यों दे नहीं पा रहा, 
पहले जैसी खुशियां ??

कि 
कैसे वो साधारण से पैण्ट-शर्ट, 
परिवर्तित हो गए हैं,
अलमारी में भरे हुए मेरे नए-नए ब्रांडेड कपड़ों में !!
लेकिन क्यों फिर भी ये कपड़े 
अनछुए ही रह जाते हैं?

कि कैसे समोसे का प्लेट,
परिवर्तित हो गया है पिज्जा और बर्गर में !!
लेकिन भूख है कि लगती नहीं...

ऑफिस से निकलने का समय है 
और मैं सोच रहा हूं 
जीवन में आए इस बदलाव के बारे में...

कि 
कैसे हमेशा रिजर्व मोड में रहने वाला, 
मेरा वह बाइक,
फोर्ड आइकॉन में बदल गया है !!
फिर भी घूमने वाली जगह नहीं है.

कि 
कैसे वो चाय का ठेला 
जहां मैं रोज चाय पिया करता था,
नेस्ले के आउटलेट में बदल गया है !!
फिर भी ऐसा लगता है कि 
दूकान बहुत दूर है...

कि 
कैसे वो 200 रुपए का प्री-पेड मोबाइल कार्ड,
बदल गया है 
असीमित पोस्ट-पेड पैकेज में !!
फिर भी क्यूं,
बातों की तुलना में गाहे-बगाहे मैसेज से काम चलाया जाता है ??

कार्यालय से निकलते समय 
सोच रहा हूं 
अपने जीवन में आये इस परिवर्तन के बारे में...

कि 
कैसे अनारक्षित बोगी की वह रेल यात्रा 
बदल गई है हवाई उड़ानों में !!
फिर भी छुट्टियां नहीं मिल पा रहीं 
आनंद मनाने हेतु.

कि 
कैसे मित्रों का वह छोटा-सा समूह 
परिवर्तित हो गया है 
सहकर्मियों के रूप में !!
लेकिन फिर भी क्यूं 
हमेशा अकेलापन महसूस होता है ??

ऑफिस से निकलते वक्त 
जीवन की इस परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं 
कि ऐसा कैसे हो गया?
कि ऐसा क्यूंकर बदल गया...
आखिर कैसे??

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इसमें किसी मौलिकता का समावेश नहीं है. कल मेरे एक सहकर्मी ने अंग्रेजी में एक मेल भेजा था, उसी मेल का हिंदी में भावानुवाद भर किया है. हालांकि, यह भी सही है कि इन पंक्तियों के द्वारा स्वयं की भी अभिव्यक्ति हो गई है. खैर, इससे आपको क्या !! आप तो बस इसे यूं ही पढ़िए, और लगे कि कुछ अपने राम को भी कहना चाहिए तो बिंदास कहिए....हे हे हे
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सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

वयं भारतीयाः : हम कौन थे और क्या हो गए !!

सर्वेभ्यो नमः....सभी को नमस्कार....

विगत वर्ष के अंतिम दिवस को यहां मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, उसके बाद पाणिनि बाबा के "अदर्शनं लोपः" सूत्र का प्रभाव हो गया था.  आज सुबह कार्यालय आने के बाद हर दिन की तरह सबसे पहला काम "जीमेल को खोलना" किया तो लगभग तेरह के करीब अपठित मेल दिखे, जिसमें  तीसरा मेल किसी राहुल जी  का था, जिन्होंने यह मेल "आर्य युवक समूह" को भेजा था, जिसका मैं भी (चाहे/अनचाहे- इस शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूं कि शुरु में जब इस ग्रुप से मेल आने शुरु हुए तो वो मेरी मर्जी के बिना ही आते थे अर्थात्‌ मैं कभी भी इनका मेंबर नहीं बना था, लेकिन शनैः-शनैः इनके इ-संदेशों में रुचि जागृत होने लगी) एक सदस्य हूं. अस्तु, इस इ-मेल की सामग्री मुझे रोचक लगी तो सोचा कि इसका हिंदी अनुवाद करके अपने ब्लॉग को भी थोड़ा अद्यतन कर दिया जाये. नीचे प्रस्तुत है उसी इ-मेल का अनुवाद.....

एक अमेरिकी भारत-भ्रमण करने के बाद जब वापस अमेरिका पहुंचा तो वहां पर उसके भारतीय मूल के मित्र ने उससे पूछा- "मेरा देश तुम्हे कैसा लगा?"

अमेरिकी ने कहा- "वाकई एक अद्भुत और महान देश!! जिसका अपना एक ठोस इतिहास व गौरवशाली परंपरा है, साथ ही जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है."   

तब भारतीय मित्र ने पूछा- "तुम्हे भारतीय कैसे लगे??"

भारतीय??
कौन है भारतीय???
मैंने पूरे भारतवर्ष में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं पाया जो भारतीय हो.....

क्या बक रहे हो !!
तब भारत में जिन लोगों को तुमने देखा, वो कौन थे??

अमेरिकी ने कहा-
कश्मीर में मिला एक कश्मीरी से.
पंजाबी मिले मुझे पंजाब में.
आमची महाराष्ट्र बोल रहे थे मराठी मानुस.
बिहार, बंगाल, कर्नाटक में मिला मैं, बिहारी, बंगाली और कन्नडिगा से....

थोड़ा और पूछने पर, 
पाया मैंने,
एक मुसलमान,
एक ईसाई,
एक जैन,
एक बौद्ध,
इसके अलावे और भी ना जाने कितने....

लेकिन नहीं मिला तो सिर्फ एक भारतीय से  :(

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हो सकता है सम्प्रति आप इसे "JOKE" की श्रेणी में रखें, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब आप और हम अपने राजनीतिज्ञों की कृपा से ऐसे दृश्यों के अभ्यस्त हो जाएं... 
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वन्दे मातरम्‌ !!!