ये भी कितनी अजीब बात है ना !! कि एक ऐसा समय भी होता है जब हम बड़े होने की जल्दी में होते हैं, जब हम यह चाहते हैं कि अपना एक मुकाम हासिल करके चैन की बांसुरी बजाएं! कि जब हम जैसा चाहें, पलक झपकते ही प्राप्त कर लें ! जब ऐसा दिन भी हम अपनी जिन्दगी में देख लेते हैं तो भी कहीं ना कहीं हमें रिक्तता का अहसास रहता ही है, और तब हम किंचित् रुक कर अपने बीते हुए पलों को याद करने लगते हैं. इसी भीतरी झंझावातों का शब्द-चित्रण नीचे किया गया है-
रात के आठ बजे हैं,
ऑफिस से निकलने का समय है,
जीवन की परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं,
कि
कैसे कॉलेज में पढ़ने वाला,
रुमानी दुनिया में रहने वाला एक छोरा,
कठिन व्यावसायिक जीवन में प्रवेश कर गया है !!
कि
पिताजी से मिलने वाला वह थोड़ा-सा जेबखर्च
बदल गया है भारी मासिक वेतन में!!
फिर भी क्यों दे नहीं पा रहा,
पहले जैसी खुशियां ??
कि
कैसे वो साधारण से पैण्ट-शर्ट,
परिवर्तित हो गए हैं,
अलमारी में भरे हुए मेरे नए-नए ब्रांडेड कपड़ों में !!
लेकिन क्यों फिर भी ये कपड़े
अनछुए ही रह जाते हैं?
कि कैसे समोसे का प्लेट,
परिवर्तित हो गया है पिज्जा और बर्गर में !!
लेकिन भूख है कि लगती नहीं...
ऑफिस से निकलने का समय है
और मैं सोच रहा हूं
जीवन में आए इस बदलाव के बारे में...
कि
कैसे हमेशा रिजर्व मोड में रहने वाला,
मेरा वह बाइक,
फोर्ड आइकॉन में बदल गया है !!
फिर भी घूमने वाली जगह नहीं है.
कि
कैसे वो चाय का ठेला
जहां मैं रोज चाय पिया करता था,
नेस्ले के आउटलेट में बदल गया है !!
फिर भी ऐसा लगता है कि
दूकान बहुत दूर है...
कि
कैसे वो 200 रुपए का प्री-पेड मोबाइल कार्ड,
बदल गया है
असीमित पोस्ट-पेड पैकेज में !!
फिर भी क्यूं,
बातों की तुलना में गाहे-बगाहे मैसेज से काम चलाया जाता है ??
कार्यालय से निकलते समय
सोच रहा हूं
अपने जीवन में आये इस परिवर्तन के बारे में...
कि
कैसे अनारक्षित बोगी की वह रेल यात्रा
बदल गई है हवाई उड़ानों में !!
फिर भी छुट्टियां नहीं मिल पा रहीं
आनंद मनाने हेतु.
कि
कैसे मित्रों का वह छोटा-सा समूह
परिवर्तित हो गया है
सहकर्मियों के रूप में !!
लेकिन फिर भी क्यूं
हमेशा अकेलापन महसूस होता है ??
ऑफिस से निकलते वक्त
जीवन की इस परिवर्तनीयता के बारे में सोच रहा हूं
कि ऐसा कैसे हो गया?
कि ऐसा क्यूंकर बदल गया...
आखिर कैसे??
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इसमें किसी मौलिकता का समावेश नहीं है. कल मेरे एक सहकर्मी ने अंग्रेजी में एक मेल भेजा था, उसी मेल का हिंदी में भावानुवाद भर किया है. हालांकि, यह भी सही है कि इन पंक्तियों के द्वारा स्वयं की भी अभिव्यक्ति हो गई है. खैर, इससे आपको क्या !! आप तो बस इसे यूं ही पढ़िए, और लगे कि कुछ अपने राम को भी कहना चाहिए तो बिंदास कहिए....हे हे हे
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